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Punarvasun7

 पुनर्वसु  4/4से4/18 "सती अव्यक्त शरीर" से "प्रथ्वी दोहन"तक (15) अध्याय वेद स्तुति प्रभु! जीव जिन-शरीरोंमें रहता है, वे शरीर उसके कर्मके द्वारा निर्मित होते हैं और   वहजीव वास्तवमें उन शरीरोके कार्य-कारणरूप आवरण से रहित हैं ,क्योंकि वस्तुतः उन आवरणोंकी सत्ता ही नहीं है। तत्वज्ञानी पुरुष ऐसा कहते हैं कि समस्त शक्तियोंको धारण करनेवाले आपका ही वह (जीव) स्वरूप है।  स्वरूप होनेके कारण "अंश नहींहोने परभी उसे अंश कहते हैं" और "निर्मित नहीं होने परभी निर्मित कहते हैं।" इसी से बुद्धिमान पुरुष,जीवके वास्तविक स्वरूपपर विचार करके, परमविश्वासकेसाथ आपके चरणकमलोंकी उपासना करते हैं। क्योंकि आपकेचरण ही समस्त वैदिक कर्मोंके समर्पणस्थान और मोक्षस्वरूप है।।#वेदस्तुति