3.युद्ध
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी! ध्रुवने प्रजापति शिशुमारकी पुत्री भ्रमिके साथ विवाह किया, उससे उनके कल्प और वत्सर नामके दो पुत्र हुए ।।१।।महाबली ध्रुवकी दूसरी स्त्री वायुपुत्री इला थी। उससे उनके उत्कल नामके एक पुत्र और एक कन्यारत्नका जन्म हुआ ।।२।। उत्तमका अभी विवाह नहीं हुआ था कि एक दिन शिकार खेलते समय उसे हिमालय पर्वतपर एक बलवान् यक्षने मार डाला। उसके साथ उसकी माता भी परलोक सिधार गयी ।।३।। ध्रुवने जब भाईके मारे जानेका समाचार सुना तो वे क्रोध, शोक और उद्वेगसे भरकर एक विजयप्रद रथपर सवार हो यक्षोंके देशमें जा पहुँचे ।।४।। उन्होंने उत्तर दिशामें जाकर हिमालयकी घाटीमें यक्षोंसे भरी हुई अलकापुरी देखी, उसमें अनेकों भूत-प्रेत-पिशाचादि रुद्रानुचर रहते थे ।।५।। विदुरजी! वहाँ पहुँचकर महाबाहु ध्रुवने अपना शंख बजाया तथा सम्पूर्ण आकाश और दिशाओंको गुँजादिया। उस शंखध्वनिसे यक्ष-पत्नियाँ बहुत ही डर गयीं, उनकी आँखें भयसे कातर हो उठीं ।।६।। वीरवर विदुरजी! महाबलवान् यक्षवीरोंको वह शंखनाद सहन न हुआ। इसलिये वे तरह-तरहके अस्त्र-शस्त्र लेकर नगरके बाहर निकल आये और ध्रुवपर टूट...
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